कितनी अकेली, कितनी
तनहा सी लगी
उन से मिलके मैं आज
कितनी अकेली, कितनी
तनहा सी लगी
उन से मिलके मैं आज
कितनी अकेली
इस तरह खुले नैना, आये वो
मेरे आगे
इस तरह खुले नैना, आये वो
मेरे आगे
जिस तरह किसी गहरी नींद
से कोई जागे
अब जहाँ से दूर हूँ कही,
बैठी मैं अलबेली
कितनी अकेली, कितनी
तनहा सी लगी
उन से मिलके मैं आज
कितनी अकेली
काश वो मेरे बन के पास
यूँ कभी आते
काश वो मेरे बन के पास
यूँ कभी आते
खुलते द्वार बाहों के,
तन दिये से जल जाते
प्यार के बिना हैं ये मन
मेरा, जैसे सुनी हवेली
कितनी अकेली, कितनी
तनहा सी लगी
उन से मिलके मैं आज
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