लूटे कोई मन का नगर बन के मेरा साथी
कौन है वो, अपनों में कभी, ऐसा कहीं होता है
ये तो बड़ा धोखा है
लूटे कोई मन का…
यहीं पे कहीं है, मेरे मन का चोर
नज़र पड़े तो बइयाँ दूँ मरोड़
जाने दो, जैसे तुम प्यारे हो
वो भी मुझे प्यारा है, जीने का सहारा है
देखो जी तुम्हारी यही बतियाँ, मुझको हैं तड़पातीं
लूटे कोई मन का…
रोग मेरे जी का, मेरे दिल का चैन
साँवला सा मुखड़ा, उसपे कारे नैन
ऐसे को, रोके अब कौन भला
दिल से जो प्यारी है, सजनी हमारी है
का करूँ मैं बिन उसके, रह भी नहीं पाती
लूटे कोई मन का…