रोज़ शाम आती थी, मगर ऐसी न थी
रोज़ रोज़ घटा छाती थी, मगर ऐसी न थी
ये आज मेरी ज़िन्दगी में कौन आ गया
रोज़ शाम आती थी…
डाली में ये किसका हाथ, कर इशारे बुलाए मुझे
झूमती चंचल हवा, छू के तन गुदगुदाए मुझे
हौले-हौले, धीरे-धीरे कोई गीत मुझको सुनाए
प्रीत मन में जगाए, खुली आंख सपने दिखाए
ये आज मेरी ज़िन्दगी…
अरमानों का रंग है, जहां पलकें उठाती हूं मैं
हंस-हंस के है देखती, जो भी मूरत बनाती हूं मैं
जैसे कोई मोहे छेड़े, जिस ओर भी जाती हूं मैं
डगमगाती हूं मैं, दीवानी हुई जाती हूं मैं
ये आज मेरी ज़िन्दगी…