विदेश जाने पर एक बार स्वामी विवेकानंद से पूछा गया, की ‘आपका बाकी सामान कहां है ?’ तो उन्होंने उत्तर दिया, ‘बस यही सामान है।’ कुछ लोगों ने व्यंग्य करते हुए कहा, ‘अरे! यह कैसी संस्कृति है आपकी ? तन पर केवल एक भगवा चादर लपेट रखी है।’ इस पर वह मुस्कुराकर बोले, ‘हमारी संस्कृति आपकी संस्कृति से अलग है।
आपकी संस्कृति का निर्माण आपके दर्जी करते हैं, जबकि हमारी संस्कृति का निर्माण हमारा चरित्र करता है। संस्कृति वस्त्रों में नहीं, चरित्र के विकास में है।’ इससे हमें सीख मिलती है कि बाहरी दिखावे से दूर रह कर अपने चरित्र के विकास पर ध्यान देना चाहिए।